गीतापाठ विधि शुद्ध भाव से शांत मन से एकाग्रतापूर्वक बैठकर सुगन्धित पुष्पों को लेकर गीता की पूजा करते हुए करण्यास एवं अगन्यास को पढ़ना अत्यंत आवश्यक माना जाता है| करण्यास एवं अगन्यास का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है : करण्यास श्रीहयग्रीवाय नमः शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजं | प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोपशान्तये || नारायणं नमस्कृत्य नरश्चैव नरोत्तमम | देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयामुदीरयेत || व्यासं वशिष्ठानप्तारं शक्त्रैः पौत्रमकल्मषं | परशारात्मजं वंदे शुकतातं तपोनिधिं || व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे | नमो वै ब्रह्मविधये वसिष्ठाय नमोनमः || अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः | अभाललोचनः शंभुर्भगवां बादरायणिः || ॐ अस्य श्रीमद्भगवद्गीतापाठमंत्रस्य भगवान् वेदव्यासः ऋषिरनुष्टुप्छन्दः श्रीकृष्णः परमात्मा देवता , अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे - इति बीजं सर्वधर्मां परित्यज्य मामेकं शरणं व्रजं - इति शक्तिः , अहम् त्वा सर्वपाप...
गीता का ध्यान पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयं व्यासेन ग्रन्थितां पुराणमुनिना मध्ये महाभारतं | अद्वैत अमृत वर्षिनीं भग्वतीमष्टादश अध्यायिनीं अम्ब , त्वामनुसन्दधामि भगवद्गीते , भवद्वेषिणीं ||1|| नमोअस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र . येन त्वया भारत तैलपूर्णः प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः ||2|| प्रपन्नपारिजाताय तोत्रवेत्रैकपाणये| ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे नमः ||3|| सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः | पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुघ्दं गीतामृतं महत् ||4|| हे जननि भगवद्गीते, महाभारत के मध्य तथा पुरातन मुनि श्री वेदव्यास के द्वारा लिखी गयी स्वयं श्री भगवान नारायण के द्वारा अर्जुन को उपलक्ष्य करके अत्यधिक उत्तम रूप से प्रकट कि गयी, पुनर्जन्म का नाश करने वाली , अद्वितीय रूपी अमृत बरसाने वाली आठारह अध्याय वाली भगवति मै तुमको नमस्कार कर्ता हू ||1|| खिले हुये कमल के पुष्प पत्र कि तरह चाक्षुवाले महाबुद्धिमान हे वेदव्यास , आपको नमस्कार हो , क्योंकि आपके द्वारा महाभारत रूप तेल से यह ज्ञानम...